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आदि संस्थापक
ध्यान समाधि के आचार्य ॐ श्री आनंद योगी जी आनंदमय
(श्री गुरुदेव भगवान)
ॐ आनन्दमय ॐ शान्तिमय
योगसिद्ध महामंत्र दिमागी रोग नाशक है और ध्यानयोग- सेवायोग युक्त समता प्रसन्नता दायक है यह दिमागी रोग दमनकारी दिव्य बूटी है आप जपकर अनुभव करें । अनुभव ही सत्य है ।
श्री ब्रह्मज्ञान
श्री गीता शास्त्र के ज्ञान सागर मंथन से अमृतमय ब्रह्मज्ञान जिसे हमारे परम पूज्य श्री गुरुदेव भगवान जी ने लोक कल्याणार्थ श्री गीता शास्त्र के युवराज श्री विश्वशांति ग्रंथ भाग 1 के नाम से श्री ग्रंथ रचना की । जिसमें उपरोक्त ब्रह्म ज्ञान की दिव्य व्याख्या की गयी। जो ग्रहण तत्व और त्याग तत्व के 125 सूत्रों के रूप में की गयी। उस ब्रह्मज्ञान की परिभाषा निम्नवत है:---
दिव्य गुणों को धारण करने का और आसुरी गुणोंको त्याग करने का नाम ब्रह्मज्ञान है।
दिव्य गुण संपन्न ब्रह्मदर्शी महामानव को ब्रह्मज्ञानी अथवा आत्मज्ञानी कहते हैं।
सात्विक गुणों को धारण करना ही ॐ आनन्दमय प्रभु पिता के परम पद और मोक्ष की प्राप्ति का साधन है यही मानव जीवन का उद्देश्य है।
यहां यह भी उल्लेख करना उचित है कि हमारे गुरुदेव भगवान श्री आनंद योगी आनंदमय जी को हमारे दादा गुरु "श्री गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक भगवान जयदयाल गोयन्दका जी " प्रेम से उन्हें योगीराज कहकर पुकारते थे। एवं हमारे गुरुदेव भगवान योगीराज जी श्री जयदयाल गोयन्दका जी अर्थात् अपने गुरु को प्रेम से जयदेव भगवान कहकर पुकारते थे।
श्री विश्वशांति आश्रम (उप शाखा)
१. ग्राम-सुन्दरपुर, पो॰-धौकलपुर, जिला- बिजनौर (उ.प्र.) - २४६७२८
Mob: 9453989186

श्री विश्वशांति आश्रम (उप शाखा)
२. ग्राम-बड़वाला, पो॰-जसमौर, जिला-सहारनपुर (उ.प्र.)- २४७१२१
शुभ सन्देश New
आयोजित कार्यक्रम
मूल्य सेवा का ज्ञान